हैदराबाद। तेलंगाना में रचाकोंडा पुलिस ने एक अंतरराज्यीय बाल तस्करी गिरोह का भंडाफोड़ किया है। एजेंटों की तरह काम करने वाले गिरफ्तार व्यक्तियों ने बताया कि फरार आरोपियों ने उन्हें लगभग 50 शिशुओं की आपूर्ति की थी। पुलिस ने इस गिरोह से 16 शिशुओं को बचाया है, जो दिल्ली और पुणे में गरीबों और बेघरों से शिशुओं को ‘खरीद’ लेते थे और उन्हें तेलंगाना में निःसंतान दंपतियों को ‘बेच’ देते थे।

दम्पत्तियों से होता था सौदा

पुलिस ने बताया कि बाद में बच्चों को अन्य एजेंटों के माध्यम से निःसंतान दंपतियों को 1.80 लाख रुपये से लेकर 5.50 लाख रुपये प्रति बच्चे की कीमत पर बेच दिया जाता था। पुलिस के मुताबिक अब तक, बाल कल्याण समिति के समन्वय से एक महीने से दो साल की उम्र तक के 13 शिशुओं – नौ लड़कियों और चार लड़कों को आरोपियों से बचाया गया है।

रचाकोंडा के पुलिस आयुक्त तरुण जोशी ने बताया कि मेडिपल्ली पुलिस स्टेशन, जहां पहली शिकायत दर्ज की गई थी। इस मामले में पुलिस ने 22 मई को तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था, जिन्होंने बाद में पूछताछ के दौरान गिरोह के अन्य सदस्यों के नाम बताए। इसके बाद, पुलिस ने 27 मई को समूह के अन्य आठ सदस्यों को गिरफ्तार किया।

कमिश्नर आनंद के नेतृत्व में की गई जांच में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में फैले इस नेटवर्क का पता चला।

पुलिस ने तत्काल की कार्रवाई

पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई के दौरान दो महिलाओं, शोबा रानी और एम स्वप्ना और शेख सलीम नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया, जो कथित तौर पर शिशु को बेचने का सौदा करने की कोशिश कर रहे थे। पूछताछ करने पर, उन्होंने नई दिल्ली और पुणे से लाए गए शिशुओं को ‘बेचने’ का नेटवर्क चलाने की बात कबूल की। कथित सरगना की पहचान 34 वर्षीय बंदरी हरि हारा चेथन के रूप में की गई है, जो हैदराबाद के बाहरी इलाके घाटकेसर में काम करने वाला एक सुरक्षा गार्ड है।

संगठित तरीके से करते थे बच्चों की तस्करी

पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह गिरोह नई दिल्ली में रहने वाली दो लोगों किरण और प्रीति और पुणे में रहने वाले एक अन्य व्यक्ति कन्नैया से बच्चों को खरीद रहा था। हमें पता चला है कि उन्होंने इन दोनों शहरों से लगभग 50 बच्चों को गिरोह को दिया है, जो बाद में उन्हें एजेंटों और अंततः तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में निःसंतान जोड़ों को सौंप देते थे । प्रति बच्चा कीमत 1.8 लाख रुपये से 5.5 लाख रुपये तक थी। गिरोह के सदस्यों को एजेंटों और बिचौलियों को भुगतान करने के बाद 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक का लाभ मिलता था। बचाये गए बच्चों को बाल कल्याण गृहों में भेजा है।

बेचे गए बच्चों को खोज निकाला

पुलिस अधिकारी के मुताबिक कॉल रिकॉर्ड का उपयोग करके, हमने गिरोह के शेष आठ सदस्यों की पहचान की। हमने पहले दो बच्चों को बचाया जो बेचे जाने वाले थे, और फिर नौ और बच्चों को उन जोड़ों से बरामद किया जिन्होंने उन्हें खरीदा था। दूसरे ऑपरेशन में, हमने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के विभिन्न हिस्सों के परिवारों से छह बच्चों को बचाया। उन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं जिन्होंने इन बच्चों को अवैध रूप से खरीदा है। वे ऐसे और परिवारों की पहचान करने की प्रक्रिया में हैं, जिन्होंने अतीत में बच्चे खरीदे होंगे।

निःसंतान दम्पत्तियों की करते थे तलाश

आरोपियों की कार्यप्रणाली के बारे में अधिकारी ने बताया कि आरोपी हैदराबाद में बच्चों की तलाश करने वालों से जानकारी एकत्र करते थे और दिल्ली-पुणे में अपने सहयोगियों से बात करते थे और बच्चे प्राप्त करते थे। पुलिस ने कहा कि कुछ आरोपी पहले भी इसी तरह के अपराध में शामिल थे और ऐसा लगता है कि वे पिछले दो-तीन वर्षों से इस रैकेट का हिस्सा थे।

इस मामले में धारा 370 (मानव तस्करी) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की अन्य प्रासंगिक धाराओं और किशोर न्याय अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।

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