नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी एक कार्यालय ज्ञापन पर रोक लगा दी है, जिसमें जिसमें पर्यावरणीय मंजूरी के बिना ही परियोजनाओं को शुरू करने की अनुमति दी गई थी।

NGO ‘वनशक्ति’ ने दायर की है याचिका

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने गैर सरकारी संगठन ‘वनशक्ति’ की ओर से दायर की गई याचिका पर पर्यावरण और वन मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। पीठ ने नोटिस के जवाब के लिए चार सप्ताह का समय देते हुए कहा कि अगले आदेश तक मंत्रालय के 20 जनवरी 2022 के ज्ञापन पर रोक रहेगी।

‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के खिलाफ है आदेश’

‘वनशक्ति’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि किसी भी गतिविधि की अनुमति देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अनिवार्य है और मंत्रालय का 20 जनवरी 2022 का आदेश पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के खिलाफ है।

उन्होंने तर्क दिया कि 2006 की पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना सभी परियोजनाओं के लिए काम करने से पहले पर्यावरणीय मंजूरी लेना अनिवार्य करती है और समस्या 2017 के एक कार्यालय ज्ञापन से शुरू हुई। इस आदेश में कथित उल्लंघनकर्ताओं को परियोजनों पर काम शुरू करने के बाद मंजूरी के लिए आवेदन करने की खातिर छह माह की अवधि प्रदान की गई है।

‘प्लांट शुरू करने से पहले प्रभाव का आंकलन जरुरी’

गैर सरकारी संगठन ने अपनी याचिका में कहा कि किसी परियोजना के लिए पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन केवल गतिविधि शुरू होने से पहले ही किया जा सकता है, उसके बाद नहीं।

याचिका में मंत्रालय के आदेश की वैधता को चुनौती दी गई थी और पर्यावरण-वन मंत्रालय और राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे ‘‘उपरोक्त आदेश के तहत मंजूरी के लिए आने वाले आवेदनों पर विचार या कार्रवाई न करें।’’

वनशक्ति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के लिए किसी भी गतिविधि के शुरू होने से पहले पूर्व अनुमोदन अनिवार्य है और पूर्व कार्योत्तर पर्यावरणीय मंजूरी की अनुमति देना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के लिए अभिशाप है।

उन्होंने तर्क दिया कि 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना सभी परियोजनाओं के लिए पूर्व पर्यावरण मंजूरी निर्धारित करती है और समस्या 2017 के एक कार्यालय ज्ञापन के साथ उत्पन्न हुई, जिसने कथित उल्लंघनकर्ताओं को कार्योत्तर मंजूरी के लिए आवेदन करने के लिए छह महीने की खिड़की प्रदान की।

एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा कि किसी परियोजना के लिए पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन केवल गतिविधि शुरू होने से पहले ही किया जा सकता है, उसके बाद नहीं।

याचिका में कार्यालय ज्ञापन की वैधता को चुनौती दी गई थी और MOEF और राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे “पूर्वव्यापी पर्यावरण मंजूरी के अनुदान के लिए किसी भी आवेदन पर कार्रवाई न करें और उस पर विचार न करें।

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