नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की याचिका पर कहा, राज्यपाल संवैधानिक शक्तियों से संपन्न होते हैं लेकिन वह उनका इस्तेमाल राज्य विधानमंडलों द्वारा कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल बिना कार्रवाई के अनिश्चितकाल के लिए विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते। न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य के गैर निर्वाचित प्रमुख के तौर पर राज्यपाल संवैधानिक शक्तियों से संपन्न होते हैं लेकिन वह उनका इस्तेमाल राज्य विधानमंडलों द्वारा कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं कर सकते। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस प्रकार की कार्रवाई संवैधानिक लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत होगी जो शासन के संसदीय स्वरूप पर आधारित है।
पीठ ने पंजाब सरकार की एक याचिका पर 10 नवंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘राज्य के गैर निर्वाचित प्रमुख के तौर पर राज्यपाल संवैधानिक शक्तियों से संपन्न होते हैं। लेकिन इन शक्तियों का इस्तेमाल राज्य विधानमंडलों द्वारा कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता।’’ पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को मंजूरी देने से रोकने का निर्णय लेते हैं तो उन्हें विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानमंडल के पास वापस भेजना होता है।
राज्यपाल के कामकाज को लेकर कही ये बात
संविधान के अनुच्छेद 200 के मुताबिक, राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं या तो वह विधेयक पर सहमति प्रदान करना, सहमति रोकना और उस राष्ट्रपति के पास भेजना। पीठ ने पंजाब में राज्यपाल द्वारा विधेयक को लंबे समय से लंबित रखने के मामले में गुरुवार को जारी अपने आदेश में कहा, राज्यपाल द्वारा अपनी शक्तियों का उपयोग राज्य विधानमंडलों द्वारा कानून बनाने के सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता है।