• फर्जी जाति का लाभ लेकर ढाई दशक तक कर ली नौकरी

  • उच्चाधिकारियों ने दिया साथ और भरपूर आर्थिक लाभ

  •  रायपुर। छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास  बोर्ड में खुद को आदिवासी बताकर नौकरी कर रहे दिलीप कुमार हेड़ाऊ ने खुद को बचाने के लिए कई हथकंडे अपनाए, वो लगातार सफल भी होता रहा, लेकिन राज्य के अनुसूचित जनजाति आयोग के सामने उसकी दाल नहीं गली और उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा। दिलीप हेड़ाऊ की कहानी भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था का जीता जागता उदाहरण है। उसका साथ राज्य के ऐसे अधिकारियों ने दिया, जो आज उच्च पदों पर बैठे हुए हैं।
    इस कहानी की शुरुआत 90 के दशक में तब होती है, जब दिलीप कुमार हेड़ाऊ को हस्तशिल्प विकास बोर्ड में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सहायक प्रबंधक पद पर नौकरी दी जाती है। कालांतर में विभाग को यह शिकायत मिली कि दिलीप कुमार हेड़ाऊ आदिवासी याने अनुसूचित जनजाति का है ही नहीं। इस मामले की जांच उच्च स्तरीय जाति प्रमाण पत्र छानबीन समिति द्वारा की गई। और 25 सितम्बर 2006 को यह निर्णय पारित किया गया कि दिलीप कुमार हेड़ाऊ को हल्बा अनुसूचित जनजाति के जारी किये गए प्रमाण पत्रों को तत्काल प्रभाव से निरस्त माना जाए। साथ ही सचिव, छ ग शासन हस्तशिल्प एवं ग्रामोद्योग विकास विभाग को लिखा जाए कि वह दिलीप कुमार हेड़ाऊ की नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से निरस्त करे। इसके अलावा गलत जाति प्रमाण पत्र बनवाने वाले और जारीकर्ता अधिकारी के खिलाफ धारा 420 के तहत एफ आई आर दर्ज कराया जाए। लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। दिलीप हेड़ाऊ ने एक नहीं, बल्कि तीन-तीन जाति प्रमाणपत्र, खुद को हल्बा आदिवासी साबित करने के लिए अलग अलग स्थानों पर बनवाया। खुद को वारासिवनी, बालाघाट का स्थायी निवासी बताने वाले दिलीप हेड़ाऊ ने अपना पहला जाति प्रमाणपत्र अविभाजित मध्यप्रदेश में सन 1991 में नायब तहसीलदार, छुईखदान, जिला-राजनांदगांव में बनवाया, जिसमें प्रकरण क्रमांक का उल्लेख नहीं है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस प्रमाणपत्र में निवास के स्थान पर पोस्ट ‘अ’, विकासखंड ‘ब’ और तहसील ‘स’ लिखा हुआ

    है। ऐसे में पहली नजर में ही यह प्रमाणपत्र फर्जी प्रतीत होता है, बाद में आर टी आई में छुईखदान के तहसीलदार ने स्पष्ट जानकारी दी है कि उनके यहाँ से संबंधित प्रमाणपत्र जारी ही नहीं किया गया है लेकिन इसी प्रमाणपत्र के आधार पर 1992 में दिलीप हेड़ाऊ को नौकरी मिल गई।

    जाति पर सवाल उठाने पर दिलीप ने दूसरा प्रमाणपत्र तत्कालीन विधायक बाबूलाल गौर द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर बनवा लिया। तब भी बात नहीं बनी, तब दिलीप ने तीसरा जाति प्रमाणपत्र अनुविभागीय अधिकारी, जगदलपुर, जिला बस्तर में बनवाकर विभाग में प्रस्तुत कर दिया। उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने दो-दो बार जांच करके सन 2006 और 2012 को दिलीप हेड़ाऊ के तीनों जाति प्रमाणपत्रों को फर्जी साबित कर दिया। आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ में जो अधिकारी समय-समय पर उच्च स्तरीय छानबीन समिति में थे, उनमें एम के राउत, मनोज पिंगूआ, बी एल ठाकुर और टी के वैष्णव शामिल हैं, आज ये सभी महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ हैं। लेकिन इन सभी की जांच रिपोर्ट दरकिनार कर दी गई, और इन सबको धता बताते हुए  दिलीप हेड़ाऊ ने अपने खिलाफ कार्रवाई के विरुद्ध न्यायालय से स्टे ले लिया, उधर विभाग में बैठे उच्चाधिकारियों ने न्यायालय के स्थगन को निरस्त न कराकर दिलीप की नौकरी को बचाकर रखा।

    • न्यायालय का आदेश, और दे दिए 9 लाख रुपए 

      शासन-प्रशासन के विभागों में बैठे अधिकारी निलम्बन अथवा बर्खास्तगी के खिलाफ न्यायालय में चल रहे मामलों में अक्सर विभाग का पक्ष मजबूती से नहीं रखते हैं, और जब फैसला कर्मचारी के पक्ष में आता है, तब ऊंची अदालत की शरण लेने से परहेज करते हैं। इसी का फायदा दिलीप हेड़ाऊ जैसे लोग उठाते हैं। दिलीप को फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर 19 दिसम्बर 2014 को पदच्युत कर दिया गया, जिसके बाद दिलीप ने उच्चाधिकारियों की लापरवाही का फायदा उठाकर 2 जनवरी  2017 को अपने पक्ष में फैसला  होना बताकर इस अवधि का 50 प्रतिशत वेतन समस्त कटौती के बाद 8 लाख 84 हजार रुपए हासिल कर लिया। आश्चर्य की बात यह है कि अधिकारियों ने विधि विभाग से मशविरा किये बिना ही न्यायालय के आदेश के एक महीने के भीतर ही भुगतान कर दिया।

    • अनुसूचित जनजाति आयोग ने लिया संज्ञान 

      छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड में हुई इस भर्राशाही की जानकारी जब अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष को हुई तब उन्होंने मामले में संज्ञान लेते हुए कड़ा पत्राचार किया। शुरुआत में तो विभाग के अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया, तब आयोग ने शासन के समक्ष इस मामले में कई अनुशंसाएं रखीं तब जाकर दिलीप हेड़ाऊ को हस्तशिल्प विकास बोर्ड से प्रबंधक पद से बर्खास्त किया गया। अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा दिलीप हेड़ाऊ के जाति प्रमाणपत्रों को फर्जी ठहराते हुए इस मामले में प्रशासकीय विभाग के उन अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही करने की अनुशंसा की गई है जिन्होंने हेड़ाऊ के मामले में केविएट दायर नहीं किया ।

    दिलीप हेड़ाऊ की बर्खास्तगी का पत्र

    • ऐसे हजारों हेड़ाऊ कर रहे हैं नौकरी 

      अविभाजित मध्यप्रदेश और अब छत्तीसगढ़ में ऐसे हजारों लोग हैं जो फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में नौकरी कर रहे हैं। ऐसे कई नाम उजागर हो चुके हैं, और उनके खिलाफ जांच भी पूरी हो चुकी है, लेकिन कालांतर में हुई कार्रवाई के बाद ऐसे अधिकारियों-कर्मचारियों ने न्यायालय से स्टे ले लिया है और वे बड़े ही मजे से नौकरी कर रहे हैं, वहीं संबंधित विभागों के अधिकारियों को इन मामलों में संज्ञान लेकर कार्रवाई करने की कोई फुरसत नहीं है। राज्य की नई सरकार से उम्मीद है कि वो फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के मामलों की नए सिरे से समीक्षा कराते हुए पात्र बेरोजगारों का हक छीनने वालों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाएगी।

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