• अंत्यावसायी विकास निगम के अध्यक्ष थे ‘निर्मल’

  • 31 महीने के कार्यकाल में साढ़े 13 लाख का डीजल खपाया

  • पात्रता 200 लीटर डीजल की, लेकिन शासन से तिगुना वसूला

रायपुर। छ ग राज्य अंत्यावसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम में लंबे समय से चल रही भर्राशाही पर रोक तब लगी, जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और निगम के अध्यक्ष निर्मल सिन्हा ने विभाग को अपना त्यागपत्र भिजवाया। अपने दो वर्ष के कार्यकाल में निर्मल सिन्हा ने लाखों रुपए की उगाही अपने विभाग से की, और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर सुविधाओं का लाभ लिया। इस दौरान यहां पदस्थ अधिकारियों ने भी उन्हें भरपूर मदद दी, लेकिन जब यहाँ पदस्थ नए अधिकारी के समक्ष उनकी दाल नहीं गली और इस बीच नई सरकार का आगाज हो गया तब उन्होंने पद से इस्तीफा देने में ही अपनी भलाई समझी।
      अनुसूचित जाति-जनजाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग के कल्याण के लिए छ ग राज्य अंत्यावसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम की स्थापना की गई है। फरवरी-2016 को इस निगम के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भाजपा के पूर्व विधायक निर्मल सिन्हा को सौंपी गई, और तब से यहां भ्रष्टाचार का लंबा खेल चला। सबसे पहले इस निगम के अधीन छत्तीसगढ़ के समस्त जिलों में संचालित अंत्यावसायी सहकारी  समितियों में तबादले को लेकर रिश्वतखोरी हुई। इसको लेकर जब हो हल्ला मचा, तब तबादले रोकने के लिए जमकर वसूली की गई। तब निगम में एमडी के रूप में इमिल लकड़ा पदस्थ थे।इस दौरान अध्यक्ष निर्मल सिन्हा ने मिलीभगत करके विभाग के भ्रष्टतम अधिकारियों को जिला समितियों में पदस्थ करवाया। फिर क्या था, अधिकांश जिलों में हितग्राहियों को ऋण दिलाने के नाम पर जमकर बंदरबांट की गई। खुद को संघ का सेवक बताने वाले निर्मल सिन्हा ने अपने पद पर रहते हुए जमकर मनमानी की, इसीका नमूना हम आपको दिखाने जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में निगम-मंडल अध्यक्षों को सुविधा के रूप में राजधानी में मकान का किराया, सर्वेन्ट, हर माह 200 लीटर डीजल,
छ ग के निगम/आयोग/मंडल के अध्यक्ष,
सदस्यों को देय सुविधाओं संबंधी पत्र
मानदेय और दैनिक भत्ता हर महीने दिया जाता है। मगर इस पद पर बैठे लोगों में केवल निर्मल सिन्हा ही इकलौते ऐसे अध्यक्ष रहे, जिन्होंने हर माह 200 लीटर से काफी ज्यादा डीजल खर्च होना बताया, और पेट्रोल पम्पों के बिल जमा कर रकम की वसूली अंत्यावसायी निगम से की।
  •  अपना पेट्रोल पंप, अपना ही बिल

छग राज्य अंत्यावसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष निर्मल सिन्हा पूर्व में भाजपा से विधायक रह चुके हैं और उनके गृहग्राम हसौद, जांजगीर में एक पेट्रोल पंप भी है जिसका नाम है भारत किसान सेवा केंद्र। तेल के खेल में माहिर निर्मल सिन्हा ने अपने पूरे कार्यकाल में सुविधा के नाम पर यही खेल खेला। इस संबंध में सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी मिली है, वह काफी चौंकाने वाली है। अंत्यावसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष की कुर्सी पर फरवरी 2016 को बैठे निर्मल सिन्हा ने अगस्त 2018 तक  अपने कार्यलय में 13 लाख, 49 हजार, 673 रुपये के डीजल का बिल वाउचर जमा कराया, और उसका भुगतान लिया। इस दौरान उन्होंने सरकारी वाहन का इस्तेमाल किया जिसके एवज में उन्हें 200 लीटर डीजल की हर माह पात्रता थी। इसके मुताबिक उन्हें बीते 31 महीने में 6200 लीटर डीजल की पात्रता थी, लेकिन उन्होंने 18,670 लीटर याने पूरे तीन गुना ज्यादा डीजल खर्च होना बताया। उन्होंने जो बिल वाउचर जमा किये, उनमे से अधिकांश उनके हसौद के खुद के पेट्रोल पंप के हैं।
  •   मानदेय से ज्यादा डीजल का खर्च

 आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अध्यक्ष निर्मल सिन्हा ने हर माह अन्य सुविधाओं सहित मिलने वाले मानदेय से भी ज्यादा का डीजल खर्च किया। आंकड़ों पर नजर डालें तो उन्होंने दिसम्बर-2017 को अधिकतम 87,000, मई-2018 को 73,000, फ़रवरी-2018 को 60,000, जुलाई-2018 को 66,000 रुपये के डीजल का बिल जमा कराया। निर्मल सिन्हा ने जनवरी 2018 के महीने में सर्वाधिक 972 लीटर डीजल खर्च का ब्यौरा दिया।  इस तरह निर्मल ने अपने कार्यकाल में लगभग 13 लाख 49 हजार रुपये का भुगतान डीजल के नाम पर लिया, और
निर्मल सिन्हा को डीजल के एवज में दी गई रकम
इसका आधा 6 लाख 62 हजार अपने पेट्रोल पंप भारत किसान सेवा केंद्र, हसौद के बिल वाउचर के आधार पर लिया था। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त निर्मल सिन्हा के वाहन के लॉगबुक से पता चलता है कि उनका अधिकांश समय उनके गृह निवास हसौद में गुजरा, और उन्होंने लोकसुराज के दौरे और अन्य निजी कार्यक्रमों में भी शासकीय वाहन का इस्तेमाल किया।
निर्मल सिन्हा के वाहन के लॉगबुक का पन्ना
  •  पात्र नहीं होने पर भी किया भुगतान

  छग राज्य अंत्यावसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम में एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं। इन्हें हर महीने प्राप्त सुविधाओं के लिए भुगतान स्वीकृति का काम यहां के एमडी का होता है। इससे पूर्व निगम में इमिल लकड़ा और अन्य अधिकारी एमडी के पद पर रहे, और अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने निर्मल सिन्हा को पात्रता से कई गुना ज्यादा रकम का भुगतान किया। सवाल यह है कि अगर गैरकानूनी तरीके से निर्मल सिन्हा को भुगतान किया गया है तो इसकी वसूली आखिर किससे होगी?
  • आईएएस एल्मा ने लगाई रोक

पूर्व की भाजपा सरकार ने कुछ महीने पहले ही निगम में एमडी के पद पर आईएएस  पी एस एल्मा को पदस्थ किया। एल्मा ने जैसे ही यहां का कामकाज संभाला, उन्होंने यहां होने वाली अफरा तफरी पर रोक लगा दी, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि निर्मल सिन्हा अपने ढाई साल के कार्यकाल के दौरान केवल 3 से 4 बार ही नया रायपुर स्थित अपने निगम के कार्यालय गए, और घर से ही अपना कार्यालय चलाते रहे। लेकिन जब पी एस एल्मा से निर्मल सिन्हा की नहीं बनी तो उन्होंने एल्मा के खिलाफ शिकायतबाजी शुरू कर दी, निर्मल ने यहां तक कि राज्यपाल सभी शिकायत की। पी एस एल्मा फिलहाल नारायनपुर कलेक्टर हो गए हैं।
  • चुपके से दिया इस्तीफ़ा

     इधर निर्मल सिन्हा ने नई सरकार की घोषणा होते ही चुपके से अपने कार्यालय में इस्तीफे के पत्र भिजवा दिया। इससे यहां कार्यरत कर्मचारी काफी खुश हुए, क्योंकि यहां के अधिकांश अधिकारियों कर्मचारियों ने अब तक निर्मल सिन्हा और उनके भ्रष्ट अमले के अधीन काम किया था, और गड़बड़ियों को जानते हुए भी वह कुछ नहीं कर पा रहे थे।
  • भर्ती में भी फर्जीवाड़ा

   निर्मल सिन्हा ने इमिल लकड़ा के कार्यकाल के दौरान दो अनियमित वाहन चालकों की नियमित नियुक्ति कर दी, जबकि इसके लिए वित्त विभाग की अनुमति ही नहीं ली गई थी। शिकायत के बाद मामले की जांच हुई, तब नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए इसके जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली का आदेश जारी किया गया, लेकिन इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस प्रकरण में तत्कालीन उप महाप्रबंधक एस टोप्पो और लेखाधिकारी पुरुषोत्तम सोनी को भी जिम्मेदार माना गया है।
  • निगम-मण्डलों की होनी चाहिए जांच

    प्रदेश में नई सरकार ने जैसे ही कामकाज संभाला, सरकार के अधीन संचालित निगम मंडलों के अध्यक्ष और सदस्यों ने इस्तीफा देना शुरू कर दिया। लगभग साल भर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने निगम मंडलों के पदाधिकारियों को सुविधाएं समाप्त कर दी थी, लेकिन पता चला है कि इनमें से अध्यक्ष- उपाध्यक्ष की सुविधाएं बरकरार रखी गई। जिस तरह निर्मल सिन्हा ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए सरकार को लाखों का चूना लगाया, कहीं ऐसा तो नहीं है कि दूसरे पदाधिकारियों ने भी ऐसा ही किया हो, इसलिए नई सरकार को निगम मंडलों की जांच कराते हुए गड़बडियों पर कार्रवाई करनी चाहिए और निर्मल सिन्हा जैसे  पदाधिकारियों और उन्हें शह देने वाले अधिकारियों से भी रकम की वसूली करनी चाहिए।

Loading

error: Content is protected !!