• नक्सल समस्या का हो सकता है अंत

  • साल के पेड़ों को बचाने का ढूंढा बेहतर विकल्प

  • बस्तर के भटकते युवाओं  को मिल सकेगा रोजगार

 जगदलपुर। छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी जाना पहचाना नाम है, वह भी किसी अच्छी चीज के लिए नहीं बल्कि ये इलाका नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। यहां के किशोर और युवा भटकाव की दिशा में हैं, बेरोजगारी और भविष्य की चिंता ने इनके हाथों में हल की बजाय बंदूक थमा दिया है। ऐसे में यहां की एक संस्था के प्रयोग ने उम्मीद की एक किरण जगाई है। हर्बल और जैविक खेती पर शोध करने वाली इस संस्था ने स्टीविया और काली मिर्च की सफल खेती की है, जिसे देखने पहुंचे छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष ने इस प्रयोग को बस्तर ही नहीं बल्कि देश भर के वनीय इलाकों के लिए मील का पत्थर बताया।
बस्तर का कोंडागांव इलाका, जहां शहर से लगे जंगल में लगे साल के पेड़ों पर काली मिर्च के बेल लहलहा रहे हैं, और इन बेलों पर काली मिर्च की
पैदावार भी हो रही है। छत्तीसगढ़ का राजकीय पेड़ है ‘साल’, और इस राज्य ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में साल के पेड़ों की बहुतायत है। कोंडागांव के चिखलपुट्टी में माँ दंतेश्वरी हर्बल फार्म एन्ड रिसर्च सेंटर द्वारा अपने फार्म हाउस में ऑस्ट्रेलियन टीक के विशालकाय पेड़ों पर काली मिर्च की बेलें चढ़ाईं गईं। लगभग एक दशक पहले शुरू किया गया ये प्रयोग काफी सफल रहा, और आज यहां एक-एक पेड़ पर 15 से 20 किलो काली मिर्च की पैदावार हो रही है। माँ दंतेश्वरी हर्बल फार्म एन्ड रिसर्च सेंटर के प्रमुख डॉ राजाराम त्रिपाठी बताते हैं कि उनके फार्म हाउस से लगा हुआ जंगल है, उनके मन में उपाय सूझा कि क्यों न यहां के साल के पेड़ों पर काली मिर्च की खेती का प्रयोग किया जाए। फिर क्या था, साल के पेड़ों पर काली मिर्च की बेलें चढ़ाई गईं, कुछ ही समय मे इन बेलों पर काली मिर्च के दाने उगने लगे। डॉ त्रिपाठी बताते हैं कि वैसे तो ऑस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर काली मिर्च की खेती फायदेमंद है, क्योंकि टीक की जड़ों में नाइट्रोजन का संग्रहण होता है, जो काली मिर्च की पैदावार में खाद का काम करता है और इसकी खेती पूरी तरह से जैविक होती है, लेकिन अगर यहां के जंगलों में साल के पेड़ों पर काली मिर्च की खेती की जाए तो जंगल से लगातार हो रही अवैध कटाई को रोका जा सकता है, साथ ही ये वनवासियों की आय का जरिया भी बन सकता है।
  • मीठी क्रांति का जनक बनेगा स्टीविया

   माँ दंतेश्वरी हर्बल फार्म एन्ड रिसर्च सेंटर ने कोंडागांव में कड़वाहट रहित स्टीविया यानि मीठी तुलसी की जैविक तरीके से सफलता पूर्वक खेती की है । यहां अच्छी गुणवत्ता वाले स्टीविया की खेती को देखते हुए केंद्र सरकार की संस्था सी एस आई आर ने माँ दंतेश्वरी हर्बल फार्म एन्ड रिसर्च सेंटर के साथ स्टीविया की खेती के लिए शोध का करार किया है। इसी करार के तहत कोंडागांव में
साल भर के भीतर स्टीविया के शक्कर का कारखाना खुलने जा रहा है। हर्बल एवं जैविक कृषि विशेषज्ञ डॉ राजाराम त्रिपाठी बताते हैं कि बस्तर में कोंडागांव और आसपास के किसानों ने काली मिर्च और स्टीविया की खेती शुरू की है, किसानों के समूहों ने भी इसमें रूचि दिखाई है। सरकार अगर योजना बनाकर इनकी खेती में मदद करे, तो धान की खेती में लगातार नुकसान झेल रहे किसानों की माली हालत में सुधार आ सकता है।
  • अशांत बस्तर के लिए अच्छी पहल

बस्तर के वनांचल में स्टीविया और काली मिर्च की सफल खेती की जानकारी मिलने पर छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष जी आर राना भी कोंडागांव पहुंचे।
यहां उन्हें ये देखकर अचरज हुआ कि साल के पेड़ों पर किस तरह काली मिर्च की लताएं लहलहा रहीं हैं। उन्होंने कहा कि नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके के लिए ऑस्ट्रेलियन टीक, काली मिर्च और स्टीविया की खेती मील का पत्थर साबित होगी। नक्सलवाद की ओर इशारा करते हुए जी आर राना ने कहा कि उपद्रवी तत्व यहाँ के युवाओं को बरगलाने का काम करते हैं और फिर उनके हाथों में बंदूकें थमा रहे हैं, ऐसे में साल के पेड़ों पर काली मिर्च की खेती न केवल उनकी बेरोजगारी दूर करेगी बल्कि वे इससे व्यवसाय भी कर सकेंगे।
  • नई सरकार से उम्मीदें

           छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष जी आर राना कहते हैं कि वनांचल में सामुहिक रूप से ग्रामीणों और वन सुरक्षा समितियों के माध्यम से काली मिर्च और स्टीविया की खेती की जा सकती है। इसके लिए सरकार से योजना बनाकर लोगों को लाभ दिलाया जा सकता है। साल के पेड़ों पर काली मिर्च की खेती छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के जंगलों में भी की जा सकेगी और कटते जा रहे जंगलों को बचाया जा सकेगा।
  • नक्सल समस्या का हो सकता है विकल्प

    बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार जमील खान का कहना है कि आज बस्तर नक्सल समस्या से जूझ रहा है, युवा वर्ग मजबूरी में जंगल की ओर जा रहा है और और उसके हाथों में हल की बजाय बंदूक थमाई जा रही है। अनेक नक्सली आत्मसमर्पण कर मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं, लेकिन इनके पास कमाई का जरिया नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार जमील खान
ऐसे में यहां के जंगलों में हर्बल प्रोडक्ट्स की खेती काफी लाभदायक हो सकती है। सरकार भी इनके लिये  योजनाएं बनाकर इन्हें स्वरोजगार से जोड़ सकती है।
      उल्लेखनीय है कि बस्तर के अनेक इलाके नक्सल समस्या से जूझ रहे हैं, युवा वर्ग मजबूरी में जंगल की ओर जा रहा है । इनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं है और न ही इस इलाके का अच्छी तरह विकास हो रहा है। ऐसे में यहां के जंगलों में हर्बल प्रोडक्ट्स की खेती काफी लाभदायक हो सकती है। देश का पहला हर्बल स्टेट कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की सरकार को इस दिशा में ठोस प्रयास करने की जरूरत है।

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