नई दिल्ली। इंडिया ब्लॉक के 100 से अधिक सांसदों ने 9 दिसंबर को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को न्यायमूर्ति स्वामीनाथन को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव सौंपा है। मद्रास हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन को लेकर सियासी हलकों में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इस प्रस्ताव में उन पर मिसकंडक्ट के गंभीर आरोप लगाए गए हैं और बेंच पर उनकी तटस्थता पर सवाल उठाते हुए ‘पक्षपात’ का आरोप लगाया गया है।
डीएमके, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और वाम दलों के सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित इस प्रस्ताव के सामने आने के बाद न्यायिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर हलचल तेज हो गई है।
जानिए न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन के बारे में
न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन मद्रास उच्च न्यायालय के प्रमुख और चर्चित न्यायाधीशों में गिने जाते हैं। उनका जन्म वर्ष 1968 में हुआ था और उन्होंने अपने कानूनी करियर की शुरुआत चेन्नई से की थी। बाद में मदुरै बेंच की स्थापना के बाद वे वहीं स्थानांतरित हो गए और लंबे समय तक प्रभावशाली वकील के रूप में काम किया। उन्होंने कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) के लिए स्थायी वकील के रूप में सेवाएं दीं और वर्ष 2014 में उन्हें मदुरै बेंच के लिए सहायक सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया।
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन को जून 2017 में मद्रास हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और बाद में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बना दिया गया। मद्रास हाईकोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, अब तक वे 52,000 से अधिक फैसले और आदेश पारित कर चुके हैं। उनके कई निर्णय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कैदियों के अधिकार, दिव्यांगों के अधिकार और पशु कल्याण जैसे संवेदनशील विषयों पर चर्चा में रहे हैं।
क्यों हो रही है हटाने की मांग..?
इंडिया ब्लॉक के सांसदों का आरोप है कि न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने अपने कुछ फैसलों में कदाचार किया है और वे बेंच पर पूरी तरह निष्पक्ष नहीं रहे। महाभियोग प्रस्ताव में एक वरिष्ठ अधिवक्ता और एक विशेष समुदाय के वकीलों के प्रति ‘पक्षपात’ का उल्लेख किया गया है। सांसदों का दावा है कि उनके कुछ निर्णय ‘एक विशिष्ट राजनीतिक विचारधारा’ से प्रभावित नजर आते हैं, जिससे संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को कमजोर करने का खतरा पैदा होता है। विपक्ष का कहना है कि न्यायपालिका की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए इस मामले में जांच जरूरी है।
न्यायाधीश को हटाने की संसद में क्या होती है प्रक्रिया?
भारत में किसी भी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया बेहद कठोर और लंबी होती है। इसके लिए लोकसभा के कम से कम 100 सांसदों या राज्यसभा के 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं। प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के बाद न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के तहत एक जांच समिति गठित की जाती है, जो आरोपों की विस्तृत जांच करती है। समिति की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में रखी जाती है और फिर न्यायाधीश को हटाने के लिए दोनों सदनों में अलग-अलग मतदान होता है। दोनों सदनों से विशेष बहुमत मिलने पर ही हटाने की प्रक्रिया पूरी हो पाती है।
न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव सामने आने के बाद राजनीतिक गलियारों के साथ-साथ कानूनी विशेषज्ञों के बीच भी तीखी बहस छिड़ गई है। एक तरफ विपक्ष इसे न्यायपालिका की जवाबदेही से जोड़ रहा है, तो वहीं दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञ इसे न्यायिक स्वतंत्रता पर राजनीतिक दबाव के रूप में भी देख रहे हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि लोकसभा अध्यक्ष इस प्रस्ताव पर आगे क्या कदम उठाते हैं।

