कोरबा। शहर के आसपास स्थित मसाहती गांवों में किस तरह की हेराफेरी हुई वह जगजाहिर है। इन गांवों का नक्शा नहीं होने का फायदा उठाते हुए दलालों ने खेतों की जमीनों को सड़कों के किनारे सेट करके खूब कमाई की, मगर कुछ ऐसे भी शातिर दलाल निकले जिन्होंने राजस्व विभाग के दशकों पुराने दस्तावेजों में भी छेड़छाड़ कर सरकारी जमीनों को अपने लोगों के नाम पर चढ़वा लिया है। इनमें ग्राम दादर का रहने वाला राजेंद्र यादव भी शामिल है जो फर्जीवाड़े के चक्कर में कई बार जेल भी जा चुका है। मजे की बात यह है कि यादव के इस फर्जीवाड़े में राजस्व विभाग के चंद अफसरों और कर्मियों ने उसका जमकर साथ दिया है।
ताजा मामला कोरबा के ग्राम दादर खुर्द से लगे हुए ढेलवाडीह का है, जहां की लगभग 18 एकड़ सरकारी जमीन की हेराफेरी कर ली गई है। इसका मास्टरमाइंड राजेंद्र यादव ही है जिसकी पहुंच एक जमाने में कोरबा तहसील के रिकॉर्ड रूम तक थी। उसने राजस्व पटवारी और अफसरों की शह पर दस्तावेजों में छेड़छाड़ की।
अधिकार अभिलेख में बुजुर्ग महिला के नाम कई एकड़ जमीन
SECL की मानिकपुर खदान से लगा हुआ है ग्राम ढेलवाडीह, जिसे मसाहती गांव कहा जाता है, अर्थात इस गांव का कोई नक्शा नहीं है। बता दें कि सन 1954–55 में वृहत सर्वे कर देशभर में लोगों की जमीनों का रिकॉर्ड तैयार किया गया। इसी रिकॉर्ड को भू अधिकार अभिलेख कहा जाता है। इस रिकॉर्ड से ही जमीनों की वास्तविक स्थिति का पता चलता है। मसाहती गांवों में इस दस्तावेज में भी जमकर छेड़छाड़ किया गया है। अगर इसमें ग्राम ढेलवाडीह के अधिकार अभिलेख का अवलोकन किया जाए तो इसमें खाता क्रमांक 40 में सुमित्रा बाई पिता पीलाराम, निवासी ग्राम दादरखुर्द का उल्लेख है, जिसमें खसरा नंबर 216, 217 और 218 की 6.50 एकड़ जमीन का भूस्वामी सुमित्रा बाई को बताया गया है।
दवा व्यवसायी और अपने बेटे को बेचा जमीन..!
अधिकार अभिलेख पर सरसरी तौर पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि जमीन सुमित्रा बाई यादव की है, मगर शंका तब होती है जब कुछ साल पहले 74 साल की सुमित्रा बाई ने अपनी साढ़े छह एकड़ जमीन का एक हिस्सा दवा व्यवसायी और जमीन ब्रोकर अविनाश महोबिया तथा अपने बेटे राजदेव यादव को बेच दिया। अब एक बुजुर्ग मां भला अपने बेटे को जमीन क्यों बेचेगी ? इसी आशंका के चलते जब हमने छानबीन की तब पता चला कि सुमित्रा बाई कोई और नहीं बल्कि घोटालेबाज राजेंद्र यादव की मां है। वैसे भी अगर सुमित्रा बाई के नाम पर कोई जमीन है तो उस पर उसकी सभी संतानों का हक होगा मगर जमीन सुमित्रा बाई के दूसरे बेटे राजदेव और व्यवसायी अविनाश के नाम पर रजिस्ट्री की गई। आखिर इसकी वजह क्या है ?
वजह जानने के लिए जब हमने ग्राम ढेलवाडीह के अधिकार अभिलेख का अवलोकन किया और जानकारों से बात की तब पता चला कि अधिकार अभिलेख में सुमित्रा बाई का नाम अलग से चढ़ाया गया है, अर्थात फर्जीवाड़ा किया गया है। दरअसल बारीकी से देखने पर पता चलता है कि अभिलेख में इससे पहले के खातों की जो लिखावट है उसमें और सुमित्रा बाई के नाम की लिखावट में अंतर है। इसके अलावा दस्तावेज में उल्लेख होता है कि किस वजह से उक्त जमीन किस वजह से व्यक्ति के नाम पर चढ़ाई गई है। सुमित्रा बाई के नाम के आगे ’नवगेद पर लगान के कारण’ का उल्लेख है। एक जानकार ने बताया कि अक्सर सरकारी जमीन पर बेजा कब्जा होने के चलते इस तरह का उल्लेख किया जाता है। अर्थात अगर मान भी लिया जाए कि सुमित्रा बाई के नाम पर जमीन थी, तो भी वह सरकारी जमीन थी। नियम के मुताबिक ऐसी जमीनों की खरीद–बिक्री के लिए कलेक्टर से अनुमति लेनी पड़ती है मगर रजिस्ट्री के समय सुमित्रा बाई को भूस्वामी बताया गया है। यह भी जांच का विषय है।
9 साल की उम्र में मिल गई जमीन
इस मामले में गौर करने वाली बात यह है कि अगर सुमित्रा बाई की उम्र अभी 75 वर्ष है तो 1954–55 में उसकी उम्र बमुश्किल 8–9 वर्ष रही होगी, जब अधिकार अभिलेख तैयार किया गया। सोचने वाली बात यह है कि क्या इतनी कम उम्र के बच्चों के नाम पर भी जमीन चढ़ा दी जाती थी। अगर तब सुमित्रा बाई के परिवार में इतनी जमीन थी तब इस पर उसके भाई–बहनों का नाम क्यों नहीं चढ़ाया गया, जो ग्राम दादर खुर्द में ही रहा करते थे। बता दें कि सुमित्रा बाई दादर खुर्द में पटेल परिवार में जन्मी थी और उन्होंने यादव जाति के शख्स से विवाह किया था, इसलिए उनकी जाति बदल गई।
लब्बोलुआब यह है कि अधिकार अभिलेख में छेड़छाड़ कर सुमित्रा बाई यादव का नाम पर जमीन चढ़ा दिया गया। और जब उसकी रजिस्ट्री कराई गई तब सुमित्रा के बेटे राजदेव का नाम इसलिए डाला गया कि जब वे जमीन किसी और को अच्छी कीमत पर बेचेंगे तब राजदेव की आड़ में उसका भाई राजेंद्र यादव भी कमाई में हिस्सेदार रहेगा।
और भी है इसी तरह का फर्जीवाड़ा
ग्राम ढेलवाडीह में राजेंद्र यादव और उसके सहयोगियों ने सुमित्रा बाई के नाम पर जिस तरह का फर्जीवाड़ा किया है, वैसा ही लगभग 18 एकड़ सरकारी जमीन की हेराफेरी कर अन्य लोगों के नाम पर चढ़ा दिया गया है। हमारी न्यूज टीम इसके सबूत इकट्ठा कर रही है।
रजिस्ट्री के बाद नामांतरण भी कर लिया
दरअसल किसी भी जमीन की रजिस्ट्री के बाद तहसीलदार के समक्ष नामांतरण के लिए आवेदन किया जाता है। इसके बाद पूरी प्रक्रिया के तहत पटवारी द्वारा पुराने रिकॉर्ड को देखने और पुष्टि करने के बाद ही नामांतरण के लिए प्रस्ताव अधिकारी के समक्ष रखा जाता है। इसके अलावा दो प्रतिष्ठित अखबारों में दावा आपत्ति के लिए सूचना भी प्रकाशित की जाती है। सवाल यह उठता है कि क्या पटवारी की नजर में यह नहीं आया कि अधिकार अभिलेख में छेड़छाड़ किया गया है। सूत्रों ने बताया है कि इस पूरे प्रकरण में जमकर पैसों का खेल हुआ है और लाखों रुपए बंटने के बाद जमीन को अब एक नंबर का बना दिया गया है। हालांकि इसमें एक पेंच अभी बाकी है जिसका खुलासा बाद में किया जाएगा।इस मामले को लेकर जब हमने राजेंद्र यादव का पक्ष जानना चाहा तब उसने कहा कि काफी जमीन उसके परिवार के पास है और किसी में भी कोई फर्जीवाड़ा नहीं किया गया है। इस जमीन के एक खरीददार अविनाश महोबिया का कहना है कि जब उन्होंने जमीन की घेरेबंदी की और रजिस्ट्री कराई तब इस तरह की बात सामने क्यों नहीं आई। उन्होंने यह भी कहा कि अगर फर्जीवाड़ा हुआ होगा तो जमीन बेचने वाले की जिम्मेदारी होगी और उसी के खिलाफ कार्यवाही होगी।