0 मामला उजागर होने के बाद जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग पर दोष थोपने की तैयारी

कोरबा/पाली। जिले के पाली विकासखण्ड अंतर्गत शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल बकसाही में पदस्थ एक शिक्षक की पत्नी व पुत्री के गंभीर बीमारी के चिकित्सा सुविधा के नाम पर बोगस मेडिकल बिल से शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत से 1.80 लाख का खेला किया गया। RTI से प्राप्त दस्तावेजों के आधार इस फर्जीवाड़ा को उजागर करने के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है और विभाग के जिम्मेदार लोग मिलकर पूरे मामले को स्वास्थ्य विभाग पर थोपने की तैयारी में जुट गए है।

जानें क्या है मामला…

पाली ब्लॉक के बकसाही में संचालित शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल में पदस्थ शिक्षक सुभाषचंद्र गुप्ता की पत्नी, बेटी के गंभीर बीमारी पर 3 माह चले उपचार के साथ चिकित्सक द्वारा लिखे गए मेडिसिन में मैनफोर्स, वियाग्रा, उस्ताद जैसे मर्दाना दवाई और चेहरे चमकाने वाले फेसवॉश और क्रीम में व्हाइट टोन फेश, क्सेसिन क्रीम, पोंड्स सैंडल, फल्क तथा कोलगेट, ईनो जैसे दवाएं लिखी गई हैं।

शिक्षक द्वारा इलाज में खर्च आए 1.80 लाख का मेडिकल बिल शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल के प्राचार्य मनोज सराफ के पास प्रस्तुत किया, जिन्होंने मेडिकल दस्तावेज का परीक्षण कर मुख्य चिकित्साधिकारी कोरबा को भेजा, जहां से उक्त बिल प्रमाणित करके जिला शिक्षाधिकारी को भेजा गया और वहां से मांगपत्र जारी कर चिकित्सा प्रतिपूर्ति राशि भुगतान करने कटघोरा कोषागार को भेजा। इस बोगस बिल का कोषाधिकारी से भुगतान भी हो गया।

शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के मिलीभगत से हुए इस फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ जब आरटीआई कार्यकर्ता बादल दुबे (विजय) द्वारा सूचना का अधिकार के तहत उक्त शिक्षक की पत्नी व बेटी के उपचार से संबंधित दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति मांगी गई। इसमें स्पष्ट हुआ कि बोगस बिल से दो विभागों ने मिलकर राज्य शासन द्वारा शिक्षकों एवं उनके परिजनो को मिलने वाली चिकित्सा सुविधा प्रतिपूर्ति की आड़ में घपलेबाजी की गई है।

स्वास्थ्य विभाग को जिम्मेदार बता रहे हैं शिक्षा विभाग के अफसर

इस मामले के उजागर होने के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है और इससे जुड़े जिम्मेदार लोग अपने बचाव में जुट गए हैं तथा पूरा दोष स्वास्थ्य विभाग के ऊपर थोपने की तैयारी की जा रही है।

एक बात तो तय है कि शिक्षक सुभाषचंद्र गुप्ता द्वारा चिकित्सा प्रतिपूर्ति पाने के लिए प्रयोग किये गए अभिलेख व संबंधित अस्पताल के कागजों की सत्यता शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग ने नही जांची और कोषाधिकारी ने भी प्राप्त बिलों व दोनों विभाग से उपलब्ध देयकों का परीक्षण नही किया। इससे कहीं न कहीं मिलीभगत परिलक्षित होती है। कायदे से इस मामले के संज्ञान में आते ही जिला शिक्षा अधिकारी को मामले की जांच का आदेश जारी कर देना चाहिए, मगर सांठगांठ का आलम यह है कि अफसर विभाग के अमले को बचाते हुए स्वास्थ्य विभाग पर इसकी जिम्मेदारी थोपने की तैयारी में है।

गौरतलब है कि ऐसा ही एक घोटाला हाल ही में दूसरे जिले में सामने आया था, जिसके उजागर होने के बाद कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए हैं। देखना है कि कोरबा जिले DEO इस मामले में क्या कार्यवाही करते हैं।

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