नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मोटर दुर्घटना पीड़ितों के लिए ‘कैशलेस’ उपचार की योजना तैयार करने में देरी को लेकर केंद्र को फटकार लगाई तथा सड़क परिवहन मंत्रालय के सचिव को स्पष्टीकरण के वास्ते तलब किया।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने इस बात पर आपत्ति जताई कि आठ जनवरी के आदेश के बावजूद केंद्र ने उसका अनुपालन नहीं किया। पीठ ने कहा, ‘‘दिया गया समय 15 मार्च, 2025 को समाप्त हो गया है। यह न केवल इस अदालत के आदेशों की गंभीर अवहेलना है, बल्कि एक बहुत ही लाभकारी कानून को लागू करने में भी कोताही है। हम सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव को वीडियो-कॉन्फ्रेंस के जरिये पेश होने और यह बताने का निर्देश देते हैं कि इस अदालत के निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया गया।’’

पीठ ने की ये टिप्पणी

पीठ ने कहा कि जब शीर्ष सरकारी अधिकारियों को यहां बुलाया जाता है, तभी वे अदालत के आदेशों को गंभीरता से लेते हैं। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि वे ‘‘अड़चनों’’ का सामना कर रहे हैं।

पीठ ने हालांकि टिप्पणी की, ‘‘यह आपका अपना कानून है, लोग जान गंवा रहे हैं, क्योंकि कैशलेस इलाज की कोई सुविधा नहीं है। यह आम लोगों के फायदे के लिए है। हम आपको नोटिस दे रहे हैं, हम अवमानना के तहत कार्रवाई करेंगे। अपने सचिव को कहें कि यहां आकर सफाई दें।’’

शीर्ष अदालत ने अधिकारी को स्पष्टीकरण के लिए 28 अप्रैल को उपस्थित होने का निर्देश दिया।

‘सभी जिला मजिस्ट्रेट को जारी करें निर्देश’

पीठ ने परिवहन विभाग के सचिव को सभी जिला मजिस्ट्रेटों को लिखित में निर्देश जारी करने का भी निर्देश दिया कि वह उन हिट-एंड-रन मामलों के दावों को जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (जीआईसी) पोर्टल पर अपलोड करें जिनकी जानकारी अब
तक नहीं दी गई है।

सुको ने दिया था यह निर्देश

उच्चतम न्यायालय ने आठ जनवरी को केंद्र को निर्देश दिया था कि वह कानून के तहत सबसे अहम समय में मोटर दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस चिकित्सा उपचार की योजना तैयार करे।

शीर्ष अदालत ने फैसले में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 162(2) का हवाला दिया था और सरकार को 14 मार्च तक योजना उपलब्ध कराने का आदेश दिया था, जिससे दुर्घटना पीड़ितों को शीघ्र चिकित्सा सुविधा के साथ कई लोगों की जान बचाई जा सके।

अधिनियम की धारा 2(12-ए) के तहत परिभाषित अहम समय, किसी दर्दनाक चोट के बाद एक घंटे की अवधि को संदर्भित करता है, जिसके तहत समय पर चिकित्सा हस्तक्षेप से मृत्यु को रोकने की सबसे अधिक संभावना होती है।

शीर्ष अदालत ने सबसे अहम समय के दौरान तत्काल चिकित्सा देखभाल उपलब्ध कराने के महत्व को रेखांकित किया और कहा था कि वित्तीय चिंताओं या प्रक्रियागत बाधाओं के कारण होने वाली देरी से अक्सर लोगों की जान चली जाती है।

पीठ ने ‘कैशेलस’ उपचार के लिए धारा 162 के तहत एक योजना तैयार करने के उद्देश्य से केंद्र के वैधानिक दायित्व को रेखांकित किया। न्यायालय ने कहा था कि प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन के अधिकार को बनाए रखने और संरक्षित करने का प्रयास करता है।

केंद्र ने प्रस्तावित योजना का एक मसौदा पेश किया था, जिसमें अधिकतम उपचार लागत 1.5 लाख रुपये और केवल सात दिनों के खर्च को शामिल किया गया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने हालांकि, इन सीमाओं की आलोचना की और दलील दी कि ये सीमाएं व्यापक देखभाल की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहेंगी।

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