0 ग्रामीणों के हमले से पुलिसकर्मी भी जख्मी

उदयपुर (सरगुजा)। सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखंड के ग्राम साल्ही और आस-पास के अन्य ग्रामों के साथ-साथ सूरजपुर जिले के जनार्दनपुर और अन्य इलाकों में परसा कोल खदान परियोजना को लेकर आज तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। गुरुवार की सुबह से ही सैकड़ों पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का काम शुरू किया गया। जिसका ग्रामीण और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य विरोध कर रहे हैं।

लाठीचार्ज में ग्रामीण के घायल होने से बढ़ा तनाव

इस इलाके में सुबह 9 से 10 बजे के बीच विरोध प्रदर्शन और मौके पर मौजूद अधिकारियों से बातचीत के दौरान हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य रामलाल पुलिस के हमले से सिर पर चोट लगने से वह घायल हो गए। इस घटना ने ग्रामीणों के बीच आक्रोश की भावना को और बढ़ा दिया। रामलाल पिछले 10 वर्षों से जल, जंगल और जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं और इस आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे हैं। जानकारी मिली है कि यहां लगभग 6000 पेड़ों की कटाई की जा रही है, जिससे लगभग 140 हेक्टेयर जंगल का सफाया किया जाएगा ताकि परसा कोल ब्लॉक का काम शुरू हो सके।

लगातार बढ़ रहा है विरोध

सरगुजा और सूरजपुर जिलों के वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की भारी मौजूदगी के बावजूद, ग्रामीणों के विरोध का स्वर लगातार तेज हो रहा है। सरगुजा और सूरजपुर जिले के वन विभाग की ओर से पेड़ों की कटाई के लिए एक दर्जन करीब सिपाही दरोगा, कुछ रेंजर और एसडीओ सहित कई अधिकारियों की मौजूदगी की सूचना मिली है।

घायल जवानों का शुरू किया इलाज

पुलिस और प्रदर्शन कारियों में हुई झड़प आधा दर्जन पुलिस अधिकारी और कुछ ग्रामीण भी घायल हो गए पुलिस के घायलों को सीएचसी उदयपुर लाया गया।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक अलोक शुक्ला ने बताया कि हसदेव के प्राचीन और अविघटित वन मध्य भारत के फेफड़े कहलाते हैं। यहां के पेड़ और प्राकृतिक नदी-नाले ही मध्य और उत्तर छत्तीसगढ़ में स्वच्छ जलवायु उत्पन्न करने का काम करते हैं। यहां के आदिवासियों ने सदियों से इन जंगलों को सुरक्षित रखा है जिस कारण आज भी बिलासपुर और कोरबा जैसे शहरों में पीने का पानी मिल रहा है।

गौरतलब है कि वर्ष 2015 में हसदेव जंगलों के तीन कोयला ब्लॉकों संचालन भारी जनविरोध के बावजूद अदानी कंपनी को सौंपा गया था, जो राजस्थान के पावर प्लांटों के लिए इस जंगल को तबाह कर कोयले का खनन करेगा। इसके विरोध में निरंतर और व्यापक जन आंदोलन हुए हैं, जिसके कारण अभी तक एक ही कोयला खदान PEKB (परसा ईस्ट केते बासन) खुल पाई है। और आज परसा खदान को खोलने के अवैध प्रयास जारी हैं।

फर्जी ग्रामसभा के सहारे खदान खोलने का प्रयास

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का कहना है कि हरिहरपुर, साल्ही, फतेपुर की ग्राम सभाओं ने अभी तक वन स्वीकृति के लिए कभी सहमति नहीं दी है। हमेशा ग्रामसभा में खनन का विरोध किया है। लेकिन कंपनी ने 2018 में सरपंच एवं सचिव पर दबाव करके फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव के दस्तावेज बनाकर वन स्वीकृति हासिल की है। वर्ष 2021 में 30 गांव से लगभग 350 से अधिक ग्रामीण 300 किलोमीटर की पदयात्रा कर रायपुर पहुंचे थे, जहां राज्यपाल ने उन्हें आश्वासन दिया था कि कंपनी के विरुद्ध धोखाधड़ी की उनकी शिकायतों पर जांच होगी।

विधानसभा में खनन नहीं करने का प्रस्ताव हुआ था पारित

छत्तीसगढ़ के पर्यावरण और जनमत के ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ विधान सभा ने सर्वसम्मति से 27 जुलाई 2022 को प्रस्ताव पारित किया था कि हसदेव जंगलों में कोई कोयला खनन नहीं किया जाए।

जनजाति आयोग ने काम पर रोक लगाने कहा

इसी वर्ष छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी कंपनी द्वारा फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव प्रस्तुत करने के आरोप में जांच बिठाई, जिसमें आयोग ने सुनवाई की और प्रशासन को ग्राम हरिहरपुर में आयोजित ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव विधि अनुरूप नहीं होने के कारण प्रकरण पर स्टे लगाने को पत्र लिखा है।

हालांकि आयोग की सुनवाई के पहले ही 16 अक्टूबर 2024 की रात से ही गांव में भारी फोर्स तैनात हो गई। दूसरी तरफ अपने जंगलों को बचाने ग्रामीण भी रात भर जंगलों में ही पहरा देते रहे। अगली सुबह पुलिस ने लाठीचार्ज कर उन्हें जंगलों से बाहर निकाल दिया।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने मांग की है कि जिन सरकारी और कंपनी के अधिकारियों की मिलीभगत से यह ग्रामसभा फर्जीवाड़ा हुआ है, उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए। मामले पर सर्व आदिवासी समाज, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और आदिवासी छात्रों ने अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और सचिव से फर्जी ग्रामसभा की जांच रिपोर्ट और अनुशंसा तत्काल जारी करने की मांग की है।

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