रायपुर। चंदूलाल चंद्राकर शासकीय मेडिकल कॉलेज, दुर्ग के 6 विभाग अध्यक्षों और तीन सीनियर रेजिडेंट ने इस्तीफा दे दिया है। सभी संविदा के तौर पर नियुक्त हैं, और प्राइवेट प्रैक्टिस को लेकर शासन द्वारा उठाये गए कदम के चलते डॉक्टरों ने यह कदम उठाया है।

इनमें मेडिसिन सर्जरी शिशु रोग स्त्री रोग,निषचेतना और रेडियोलॉजी के विभाग अध्यक्ष शामिल हैं। जिन डॉक्टरों ने इस्तीफे दिए हैं उनमें डॉ रूपेश कुमार अग्रवाल, डॉ नवीन शर्मा, डॉ नरेश देशमुख, डॉ कौशल, डॉ समीर कटारे, डॉ अंजाना, डॉ करण चंद्राकर, डॉ सिंघल और डॉ मिथलेश कुमार यदु शामिल हैं।

गौरतलब है कि राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग ने शासकीय सेवा में नियुक्त डॉक्टरों के प्राइवेट प्रैक्टिस को रोकने के लिए विभाग एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। अपनी इसी रणनीति के तहत स्वास्थ्य विभाग ने आयुष्मान योजना का लाभ उठाने वाले निजी अस्पतालों को यह शपथ पत्र देने को कहा है कि उनके यहां कोई भी सरकारी डॉक्टर सेवा नहीं दे रहा है। सच तो यह है कि आज कई डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करने की अनुमति ले रखे हैं, ऐसे में अगर निजी अस्पतालों की नकेल कसी जाये तो स्वाभाविक है कि डॉक्टर जिस जगह ज्यादा आय होगी, वहां अपनी सेवाएं देने को तत्पर रहेंगे। इसी रणनीति के तहत सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पदस्थ 9 डॉक्टरों ने इस्तीफा दे दिया है। बताया जा रहा है कि कुछ दूसरे अस्पतालों में भी इसी तरह इस्तीफे का दौर शुरू हो गया है।

इस्तीफा देने वाले एक चिकित्सक ने खोजखबर न्यूज़ से चर्चा में बताया कि निजी अस्पतालों में भी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों की 20% तनख्वाह काट दी जा रही है। वैसे भी संविदा डॉक्टर के तौर पर कार्यरत चिकित्सकों को जितना वेतन मिलता है उससे 3 गुना ज्यादा वेतन निजी अस्पतालों द्वारा दिया जाता है। संविदा पर होने के चलते उन्हें नौकरी से कब निकल दिया जाये इसकी कोई गारंटी नहीं है। डॉक्टर ने तो यह भी कह दिया कि चिकित्सा विभाग में बैठे जिम्मेदार अधिकारियो को मेडिकल की प्रैक्टिस की जानकारी ही नहीं है। इनके द्वारा अनुमति दी जाती है कि वे अपने घर पर प्रैक्टिस कर सकते हैं, मगर ऐसे कई विशेषज्ञ हैं जो घर से प्रैक्टिस कर ही नहीं सकते। ऐसे में केवल घर पर प्रैक्टिस करने की अनुमति देने का क्या औचित्य।

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