धमतरी। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में आदिवासी समुदाय द्वारा हर वर्ष एक अनोखी अदालत लगाई जाती है, जिसमें देवी-देवताओं को कटघरे में खड़ा होकर सुनवाई की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। यहां की यह अद्वितीय परंपरा न केवल धार्मिक आस्थाओं को दर्शाती है, बल्कि आदिवासी समाज की संस्कृति और न्याय प्रणाली को भी उजागर करती है।

माई होती हैं इस अदालत की न्यायाधीश

धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई में शनिवार को कोर्ट लगाकर देवी-देवताओं को सजा दी गई। आदिवासी देवी-देवताओं की न्यायाधीश भंगा राव माई की जात्रा होती है। वे भादो महीने में अपनी अदालत लगाती हैं और गलती करने वाले देवी-देवताओं को सजा देती हैं। इस जात्रा में बीस कोस बस्तर और सात पाली ओडिशा सहित सोलह परगना सिहावा के देवी-देवता शामिल होते हैं। वे यहां न्यायालयीन प्रक्रिया से गुजरते हैं। ये आदिवासी देवी-देवताओं का कोर्ट है। भंगा राव माई आदिवासी देवी-देवताओं की प्रमुख हैं।

महिलाओं का यहां आना है प्रतिबंधित

ये अनोखी प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसमें सभी समुदाय और वर्गों की आस्था जुड़ी है। कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई में यह जात्रा पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न हुई। खास बात यह है कि इस जगह पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है। मान्यता है कि भंगा राव माई की अनुमति के बिना देवी-देवता भी कोई काम नहीं कर सकते। अगर देवी-देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते हैं, तो शिकायत के आधार पर उन्हें भी सजा सुनाई जाती है। प्रक्रिया के दौरान देवी-देवताओं को भी कटघरे में खड़ा किया जाता है

हर विपदा के लिए देवी-देवता को मानते हैं जिम्मेदार

मान्यता है कि गांव में आई हर विपदा या कष्ट के लिए यहां के देवी-देवताओं को ही जिम्मेदार होते हैं। लोगों का कहना है कि वे पूरे मन से इनकी उपासना करते हैं और अगर वे उनके कष्ट को दूर नहीं करें, तो माना जाता है कि उन्होंने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया, ऐसे में न्यायाधीश भंगा राव माई उन्हें सजा सुनाती हैं। साल में एक बार लगने वाले भंगा राव माई की जात्रा में ग्रामीण देवी-देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी, मुर्गी, लाट, बैरंग, डोली, नारियल, फूल, चावल लेकर आदिवासी पहुंचते हैं।

दोषी को डाल देते हैं कारागार में हैं..!

जात्रा में गांवों से आए शैतान, देवी और देवताओं की शिनाख्त की जाती है। इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाईनुमा गहरे गड्ढे के किनारे फेंक दिया जाता है। इसे ग्रामीण कारागार (जेल) कहते हैं।

आरोप सिद्ध होने पर मिलती है सजा

ग्रामीण बताते हैं कि पूजा के बाद आरोपी देवी-देवताओं के केस की सुनवाई होती है। आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने के लिए सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते हैं। आरोप सिद्ध होने पर सजा सुनाई जाती है।

अनूठी है यह परंपरा…

आदिवासियों की यह परंपरा वाकई में अनूठी है। भारतीय समाज में देवी-देवताओं को इंसाफ के लिए जाना जाता है। अदालतों से लेकर आम परंपराओं में भी देवी-देवताओं की कसमें खाई जाती हैं, लेकिन उन्हीं देवी-देवताओं को यदि न्यायालय की प्रक्रिया से गुजरना पड़े तो यह वाकई में अनूठी परंपरा है जो इस आधुनिकता के दौर में शायद ही कहीं दिखाई दे।

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