रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल पीड़ितों का मुद्दा फिर से गर्माता जा रहा है। प्रदेश सरकार की पहल पर बस्तर के माओवादी हिंसा से पीड़ित लोगों का एक समूह अपनी गुहार लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलने नई दिल्ली पहुंचा। इसी दौरान बस्तर के कई जिलों के नक्सल प्रभावितों का एक दल गृहमंत्री विजय शर्मा से मिलने रायपुर शहर पहुंचा। मगर घंटों इंतजार के बाद भी इन्हें गृहमंत्री से मिलने नहीं दिया गया, वहीं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह से भी इनकी मुलाकात नहीं हो सकी। आखिकार इन्होने कलेक्ट्रेट में ADM को अपना ज्ञापन सौंपा और खाली हाथ वापस लौट गए।

बस्तर शांति समिति के बैनर तले 50 से अधिक नक्सल पीड़ितों ने नई दिल्ली में राष्ट्रपति और गृहमंत्री के समक्ष अपनी पीड़ा और व्यथा सुनाई। पीड़ितों ने कहा कि उनका बस्तर सदियों से शांत और सुंदर रहा है, लेकिन बीते चार दशकों में माओवादियों के कारण अब यही बस्तर आतंकित हो चुका है। जिस बस्तर की पहचान यहां की आदिवासी संस्कृति और परंपरा रही है, उसे अब लाल आतंक के गढ़ से जाना जाता है। पीड़ितों ने ज्ञापन देकर मांग की है कि इस विषय को लेकर संज्ञान लें और बस्तर को माओवाद मुक्त करने के लिए पहल करें।

‘पुनर्वास नीति होने के बावजूद सालों से संघर्ष कर रहे नक्सल प्रभावित’

छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या शुरू हुए लगभग 3 दशक हो चुके हैं और इस दौरान बड़ी संख्या में जवान और आम आदमी मारे गए, वहीं हजारों की संख्या में लोगों ने पलायन किया। इस बीच सरकारों ने नक्सल प्रभावितों के लिए पुनर्वास नीति बनाई, जरुरत के मुताबिक उसमें बार-बार संशोधन किया, मगर अधिकांश प्रभावितों को समग्र लाभ नहीं मिल सका। यही वजह है कि नक्सल प्रभावित आज भी अपनी समस्याओं के लिए भटक रहे हैं और डर के साये में जी रहे हैं। ऐसे ही नक्सल पीड़ित परिवारों का एक दल 20 सितंबर को राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री और गृहमंत्री से मिलने पहुंचा। इस दौरान चल रही मंत्रिमंडल की बैठक के बाद यह दल गृहमंत्री विजय शर्मा के निवास पर पहुंचा। यहां दो घंटे बीत गए मगर इन्हे गृहमंत्री से मिलने नहीं दिया गया।

नक्सल प्रभावितों में शामिल धीरेन्द्र साहू ने बताया कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की व्यस्तता के चलते उनसे भी मुलाकात नहीं हो सकी। इसके बाद वे विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह से मिलने उनके निवास पर पहुंचे मगर वहां मौजूद स्टाफ ने उनसे भी मिलने नहीं दिया। थक-हार कर उन्होंने रायपुर कलेक्ट्रेट में पहुंचकर कार्यालय में मौजूद अपर कलेक्टर को गृहमंत्री के नाम का ज्ञापन सौंप दिया।

योजनाओं का लाभ नहीं मिलने पर कर रहे आंदोलन

इस बीच दिल्ली गए नक्सल प्रभावितों को लेकर सवाल पूछे जाने पर कलेक्ट्रेट पहुंचे धमतरी के गेंदालाल मांडवी ने कहा, “इसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। वे कौन लोग हैं? किसके माध्यम से भेजे गए हैं? इसकी कोई जानकारी हमारे पास नहीं है, लेकिन यह जरूर है कि हम नक्सल पीड़ित परिवार हैं। हमें योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। इसलिए हम आज आंदोलन को विवश है।”

मंत्रियों से मुलाकात नहीं होने के बाद इस दल ने नेता प्रतिपक्ष डॉ चरण दास महंत से मुलाकात की और उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराया। डॉ महंत ने इन्हें यथासंभव सहयोग के लिए आश्वस्त किया है।

नक्सल प्रभावित परिवार आज भी भटक रहे

धीरेन्द्र साहू ने बताया कि नक्सलियों ने उसके पिता को बीच चौराहे पर गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद वे पलायन कर सपरिवार शहरी इलाके में रहने को मजबूर हैं। उसके जैसे कई नक्सल पीड़ित परिवार के आश्रितों को सरकार ने नौकरी तो दे दी है, मगर जब रहने के लिए आवास देने की बारी आयी तो अब उन्हें कलेक्टर द्वारा अपात्र बताया जा रहा है। वे आवास के अलावा अन्य कई मांगों के लिए कई बार राजधानी आ चुके हैं। इन मुद्दों को लेकर वे बीते एक दशक से पूर्व सीएम और वर्तमान सीएम से कई बार मिल चुके हैं। हर बार उन्हें आश्वासन मिला लेकिन जिलों में पदस्थ कलेक्टर और पुनर्वास समिति द्वारा हर बार बहानेबाजी करके पात्र लोगों को अपात्र घोषित कर दिया जाता है। उनकी प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं :

0 नक्सल पीड़ित परिवारों को जमीन के बदले जमीन दिया जाए.

0 प्रदेश स्तर पर नक्सल पीड़ित परिवारों को पुलिस अधीक्षक की ओर से प्रमाण पत्र दिलवाया जाए.

0 नक्सल पीड़ित परिवार जीवन यापन करने के लिए शासन की ओर से योग्यतानुसार नौकरी दिया जाए.
0 नक्सल पीड़ित परिवार को प्रदेश स्तर पर योजना के तहत पर लाभ दिया जाए.

0 नक्सल पीड़ित बेरोजगार को योजना के तहत अनुदान लाभ दिया जाए.

इन नक्सल प्रभावित परिवारों को नौकरी में आरक्षण दिए जाने की भी मांग की। साथ ही मांगे पूरी न होने पर 2 अक्टूबर से आमरण अनशन शुरू करने की चेतावनी इन्होंने दी है।

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