बिलासपुर। शहर में संचालित रेलवे इंग्लिश मीडियम क्रमांक-2 बुधवारी बाजार स्कूल में पढ़ने वाले एक छात्र की टीचर द्वारा बेरहमी से पिटाई का मामला सामने आया। इस मामले में परिजनों की शिकायत पर स्कूल प्रबंधन ने जांच के बाद टीचर को निलंबित कर दिया है।

छड़ी के टूटने तक पीटा

मिली जानकारी के मुताबिक पीड़ित 14 वर्षीय छात्र बुधवारी बाजार क्षेत्र के रेलवे इंग्लिश मीडियम स्कूल में कक्षा आठवीं का छात्र है। उसे संस्कृत के शिक्षक ने छड़ी टूटने तक बेरहमी से पीटा। बच्चे की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह कॉपी में नोट्स नहीं लिख पाया, जिसके कारण संस्कृत के शिक्षक राकेश कुमार को गुस्सा आ गया और अपने हाथ में रखी मोटी छड़ी से उसके पीठ पर इतने गहरे चोट दिये कि छात्र बदहवास होकर गिर पड़ा।

उसे जब होश आया तब वहां मौजूद किसी व्यक्ति के फोन से उसने अपने पिता को कॉल किया । परिजन जब रेलवे इंग्लिश मीडियम स्कूल पहुंचे, तो डरे सहमे बच्चे ने पूरी घटना की जानकारी अपने पिता को दी। इसके बाद मामले की शिकायत स्कूल के प्रिंसिपल से की गई। परिजनों ने शिक्षक को स्कूल से निकालने की मांग की। जिस पर प्रिंसिपल ने उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया, जिसके बाद तुरंत कार्रवाई करते हुए शिक्षक राकेश कुमार को मंगलवार को सस्पेंड कर दिया गया है।

शिक्षक करे बच्चे की पिटाई, तो क्या है क़ानून?

भारत में बच्चों के लिए लाए गए नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा (RTE) अधिनियम, 2009 में शारीरिक सज़ा और मानसिक प्रताड़ना को रोकने का प्रावधान है। वहीं दि जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन) एक्ट, 2000 में भी बच्चों के लिए कई प्रावधान किए गए हैं ।

RTE के सेक्शन 31 के तहत ही बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिल रहा है। इसकी निगरानी करने के लिए नेशनल कमीशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) बनाया गया है । NCPCR ने स्कूलों में दी जाने वाली ऐसी सज़ा या कॉरपोरल पनिशमेंट को ख़त्म करने के लिए दिशानिर्देश दिए हैं। हालांकि भारतीय क़ानून में कॉरपोरल को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन RTE के प्रावधानों के तहत कॉरपोरल पनिशमेंट को शारीरिक सज़ा, मानसिक प्रताड़ना और भेदभाव में वर्गीकृत किया गया है। इनमें बच्चे को दी जाने वाली किसी भी तरह की शारीरिक सज़ा जिससे बच्चे को दर्द हो, चोट लगे, बैचेनी होने लगे शामिल है ।

उदाहरण के तौर पर इसमें-

मारना
लात मारना
खंरोच मारना
चोटी काटना
बाल खींचना
कान खींचना
थप्पड़ मारना
मुंह से काटना
किसी चीज़ (डंडा, छड़ी, डस्टर, बेल्ट, कोड़े, जूते आदि) से मारना
इलेक्ट्रिक शॉक देना
वहीं बेंच पर या दीवार के सहारे खड़ा करना मानसिक प्रताड़ना में शामिल है ।

इसके अलावा बच्चे पर तंज कसना, अलग-अलग नाम से बुलाना, डांटना, डराना, अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल करना या नीचा दिखाना, शर्मसार करना आदि इसमें शामिल है ।

अगर स्कूल में बच्चे के प्रति व्यवहार पूर्वाग्रह से ग्रसित होता है तो भेदभाव की श्रेणी में आता है। इसमें जाति, जेंडर, व्यवसाय, क्षेत्र, 25 फ़ीसद आरक्षण में दाखिला, कमज़ोर तबके में शामिल होने आदि के आधार पर किसी तरह का पक्षपात किया जाता है तो वो इसमें शामिल माना जाता है ।

इस जुर्म की सज़ा क्या है?

ऐसे मामले सामने आने के बाद सज़ा में जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट (जेजे एक्ट) और आरटीई के तहत सज़ा का प्रावधान किया गया है। अगर बच्चे को शारीरिक सज़ा या मानसिक प्रताड़ना दी जाती है तो इस पर आरटीई का सेक्शन 17(1) रोक लगाता है और इसके सेक्शन 17(2) में इसमें सज़ा का प्रावधान किया गया है ।

इसमें ये कहा गया है कि किसी भी बच्चे को शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना नहीं दी जा सकती है, अगर कोई इन प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उस व्यक्ति के खिलाफ मौजूदा सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है ।

अगर कोई जुवेनाइल यानी 18 साल के कम उम्र के बच्चे किसी अनाथालय, बच्चों के आश्रम में रहते हैं और उन पर इन संस्थाओं के मालिक/ संचालक/ अधीक्षक किसी प्रकार की प्रताड़ना, हमला करते हैं तो उसमें भी सज़ा का प्रावधान किया गया है । इसके अलावा यहां रह रहे बच्चों को वो कहीं छोड़ देते हैं या उन्हें मानसिक या शारीरिक नुकसान पहुंचाया जाता है तो ऐसे मामलों के सामने आने पर जेल की सज़ा भी होती है।

ऐसे मामले सामने आने पर दि जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट, 2000 के सेक्शन 23 के मुताबिक़, छः महीने तक की जेल की सज़ा, जुर्माना या दोनों दी जा सकती है ।

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