लखनऊ। हाथरस जिले के सिकन्द्राराऊ क्षेत्र में आयोजित ‘भोले बाबा’ के एक सत्संग में मंगलवार को भगदड़ की घटना में 121 लोगों की मौत और कई अन्य के घायल हो जाने के बाद उनके बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ गयी। भोले बाबा कहे जाने वाले सूरजपाल जाटव ने करीब दो दशक से अधिक समय पहले पुलिस की नौकरी छोड़कर आध्यात्म की ओर रुख किया। और बाबा नारायण हरि उर्फ साकार विश्व हरि ‘भोले बाबा’ बनकर अपने अनुयायियों की एक बड़ी तादाद खड़ी कर दी।

कई राज्यों से आये थे भक्त

बाबा के प्रभाव और अनुयायियों का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि मंगलवार की रात को उत्तर प्रदेश शासन की ओर से भगदड़ के जिन मृतकों की सूची जारी की गयी उनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एटा और हाथरस जिलों के अलावा आगरा, संभल, ललितपुर, अलीगढ़, बदायूं, कासगंज, मथुरा, औरैया, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बुलंदशहर, हरियाणा के फरीदाबाद और पलवल, मध्यप्रदेश के ग्वालियर, राजस्थान के डीग आदि जिलों से लोग सत्संग में पहुंचे थे।

मृतकों में सर्वाधिक महिलाएं

खासतौर से बाबा के समागम में जाने वाली अधिकांश महिलाएं थीं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 121 मृतकों में महिलाओं की संख्या 108 थी।पुलिस के एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ने पहचान गुप्त रखते हुए मीडिया को बताया कि कासगंज जिले के पटियाली थाना क्षेत्र के बहादुर नगर के मूल निवासी करीब 70 वर्षीय ‘भोले बाबा’ का असली नाम सूरजपाल है। उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति (एससी) के सूरजपाल ने करीब दो दशक पहले पुलिस की नौकरी छोड़कर आध्यात्म की ओर रुख किया और ‘भोले बाबा’ बनने के बाद उनके भक्तों की संख्या बढ़ने लगी। उनके सत्संग में बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं।

छेड़खानी के मामले में गए थे जेल

उत्तर प्रदेश पुलिस की नौकरी के शुरुआती दिनों में वे स्थानीय अभिसूचना इकाई (LIU) में तैनात रहे और क़रीब 28 साल पहले छेड़खानी के एक मामले में अभियुक्त होने के कारण निलंबन की सज़ा मिली।

निलंबन के कारण सूरजपाल जाटव को पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि इससे पहले सूरजपाल जाटव क़रीब 18 पुलिस थाना और स्थानीय अभिसूचना इकाई में अपनी सेवाएं दे चुके थे।

इटावा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजय कुमार बताते हैं कि छेड़खानी वाले मामले में सूरजपाल एटा जेल में काफ़ी लंबे समय तक क़ैद रहे और जेल से रिहाई के बाद ही सूरजपाल बाबा की शक्ल में लोगों के सामने आए।

हाथरस के एक जानकार ने बताया, ‘‘बाबा प्रवचन देते हैं और सुरक्षा व्यवस्था के लिए अपने ‘वालंटियर’ रखते हैं, जो उनके सत्संग की व्यवस्था संभालते हैं।’’ उन्होंने बताया कि प्रवचन देने वाले ‘भोले बाबा’ ने डेढ़ दशक से अधिक समय पहले पुलिस की नौकरी छोड़कर सत्संग शुरू किया था और ‘साकार विश्व हरि भोले बाबा’ बन गये।

सफ़ेद सूट और टाई पहनते हैं बाबा..!

बाबा के बहादुर नगर के आश्रम स्थापित होने के बाद गरीब और वंचित तबके के बीच में उनकी प्रसिद्धि तेजी से बढ़ी और लाखों की संख्या में उनके अनुयायी बन गए। नारायण हरि की एक खासियत यह है कि वह भगवा वस्त्र नहीं पहनते हैं, बल्कि सफेद सूट और टाई पहनना पसंद करते हैं। उनका दूसरा पसंदीदा परिधान कुर्ता-पायजामा है।

अपने प्रवचनों के दौरान वह कहते हैं कि उन्हें जो दान दिया जाता है, उसमें से वे कुछ भी नहीं रखते और उसे अपने भक्तों पर खर्च कर देते हैं।

जो गिरा, वो उठ नहीं पाया

बाबा का यह आयोजन स्थल अलीगढ़ से एटा को जोड़ने वाले नेशनल हाइवे 34 पर सिकन्द्राराऊ क़स्बे से क़रीब चार किलोमीटर दूर फुलराई गांव में हैं। यहां कई बीघा ज़मीन पर टेंट लगाया गया था, जिसे जल्दबाज़ी में उखाड़ा जा रहा है। अधिकतर लोगों की मौत, आयोजन स्थल के उस पार हाइवे किनारे हुई है. बारिश होने की वजह से हाइवे के इस ढलान पर फिसलन है।

चश्मदीदों के मुताबिक़, जो इस भगदड़ में गिरा वो उठ नहीं सका। दिन में हुई बारिश की वजह से भी मिट्टी गीली थी और फिसलन थी, इससे भी हालात और मुश्किल हो गए।

बाबा के दर्शन को खड़ी थी महिलाएं

नारायण साकार विश्व हरि उर्फ़ ‘भोले बाबा’ के निकलने के लिए अलग से रास्ता बनाया गया था। बहुत सी महिलाएं बाबा के क़रीब से दर्शन पाने के लिए खड़ी थीं। जैसे ही सत्संग समाप्त हुआ, हाइवे पर भीड़ बढ़ गई। नारायण साकार जब अपने वाहन की तरफ़ जा रहे थे, उसी वक़्त भगदड़ मची।

नारायण साकार के भक्त जब भगदड़ में फंसे थे, वो वहां रुके बिना आगे बढ़ गए। इस घटना के बाद से बाबा या उनके सत्संग से जुड़े लोगों की तरफ़ से कोई अधिकारिक बयान नहीं आया है।

सत्संग में मीडिया की नो इंट्री

स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक़, नारायण साकार हाथरस में पिछले कुछ सालों में कई बार सत्संग कर चुके हैं और हर बार पिछली बार से अधिक भीड़ होती है जो इस बात का इशारा है कि सत्संग से जुड़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

पत्रकार बीएन शर्मा बताते हैं, “बाबा के सत्संग में मीडिया की एंट्री नहीं होती है, वीडियो बनाने पर रोक रहती है। बाबा मीडिया में भी अधिक प्रचार नहीं करते हैं।”

बीएन शर्मा कई बार बाबा के सत्संग को ‘बाहर से’ देख चुके हैं. उनके मुताबिक़- सत्संगी बेहद अनुशासित होते हैं। सत्संग स्थल की साफ़-सफ़ाई ख़ुद करते हैं और बाक़ी ज़िम्मेदारियां भी स्वयं ही संभालते हैं। भीड़ के प्रबंधन से लेकर ट्रैफिक के प्रबंधन तक का काम सत्संगियों के ही जिम्मे होता है।

नारायण साकार की सुरक्षा में सत्संगियों का भारी दस्ता रहता है जो उनके इर्द-गिर्द चलता है, जिसकी वजह से नारायण साकार के क़रीब तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

सत्संग में पहुंच गए ढाई लाख भक्त…!

इस सत्संग के आयोजन की तैयारी कई दिनों से चल रही थी। टेंट आठ दिन में लगकर पूरा हुआ। आयोजनकर्ताओं ने अनुमति मांगते हुए प्रशासन को बताया था कि क़रीब 80 हज़ार लोग सत्संग में हिस्सा लेंगे, लेकिन यहां पहुंचने वालों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा रही। एक जानकारी के मुताबिक घटना के वक्त करीब ढाई लाख लोग मौजूद थे।

चरणामृत और चरणों की धूल लेने की मची होड़

सत्संग के दौरान बाबा के पैरों और शरीर को धोने वाले जल जिसे चरणामृत भी कहा जाता है, इसे लेने की होड़ भी भक्तों में मची रहती है।

बीएन शर्मा कहते हैं, “भक्त बाबा के चरणों की धूल को आशीर्वाद समझते हैं और बाबा जहां से गुज़रते हैं वहां की मिट्टी को उठाकर ले जाते हैं। मंगलवार को जब भगदड़ मची, बहुत सी महिलाएं इसी धूल को उठाने के लिए नीचे झुकी हुईं थीं। यही वजह है कि जब भगदड़ मची, बहुत से लोगों को उठने का मौक़ा ही नहीं मिल पाया।

चश्मदीदों और भक्तों के मुताबिक़, सत्संग समाप्त होने के बाद यहां आए श्रद्धालुओं में बाबा के चरणों की धूल इकट्ठा करने की होड़ मच गई और यही भगदड़ का कारण रही।

बाबा हो या न हो, आश्रम में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं भक्त

भोले बाबा का आश्रम जिले के पटियाली तहसील क्षेत्र के बहादुरनगर गांव में मौजूद है। यह उनका पैतृक गांव भी है। भोलेबाबा का बहादुर नगर में बड़ा आश्रम बना है। इस आश्रम में पहले सप्ताह के प्रत्येक मंगलवार को सत्संग होता था, लेकिन कुछ वर्ष पहले से यह परंपरा टूटी है। लोगों का कहना है कि बाबा पिछले कई वर्षों से आश्रम नहीं आए हैं। लोग यह भी बताते हैं कि बाबा आश्रम में रहें या न रहें, लेकिन उनके भक्तों के आने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी रहता है।

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