रायपुर। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला को, इस साल का ग्रीन नोबल कहा जाने वाला प्रतिष्ठित ‘गोल्डमैन अवार्ड’ दिया जाएगा। सोमवार को अमेरिका में इसकी घोषणा की गई।

पर्यावरण संरक्षण में भूमिका निभाने वालों को मिलता है अवार्ड

गोल्डमैन अवार्ड दुनिया में पर्यावरण संरक्षण का काम करने वालों को दिया जाता है। हसदेव अरण्य में पिछले एक दशक से आदिवासियों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रहे आलोक शुक्ला और उनके साथियों के प्रतिरोध के कारण राज्य सरकार को इस भूभाग को लेमरु एलिफेंट रिजर्व घोषित करना पड़ा, जिसके कारण जंगल का एक बड़ा इलाका संरक्षित हो सका है।

हसदेव के आदिवासियों ने जताई खुशी

आलोक शुक्ला को ग्रीन नोबल कहे जाने वाला गोल्डमनैन अवार्ड दिए जाने पर हसदेव अरण्य संघर्ष समिति से जुड़े आदिवासियों ने प्रसन्नता जताई है। इनकी ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह सम्मान असल में हसदेव की संघर्षरत जनता का सम्मान है, और देश और दुनिया की उस जनता का भी सम्मान है, जिन्होंने इस संघर्ष में लगातार साथ निभाया है। बयान में कहा गया है कि हसदेव के लोगों ने लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं से हर संभव प्रयास किए, सारे सरकारी और राजनैतिक दरवाजे खटखटाए, अनेकों धरना-प्रदर्शन-सम्मेलन इत्यादि आयोजित किए और 300 किलोमीटर लंबी पदयात्रा रायपुर तक निकाली।

इधर सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा है कि आलोक शुक्ला इस सम्मान के लिए सर्वथा योग्य नाम हैं। उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से आदिवासियों के इस आंदोलन का नेतृत्व किया है और अब तक हसदेव अरण्य की लड़ाई को इस जगह तक पहुंचाया है।

‘तेज होगी हसदेव जंगल को बचाने की लड़ाई’

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक मंडल ने इस अवार्ड की घोषणा के बाद जारी प्रेस नोट में कहा है कि ग्रीन नोबल अवार्ड हमारे वर्षो के संघर्ष का सम्मान है l इस सम्मान से समृद्ध हसदेव जंगल को बचाने की हमारी लड़ाई और तेज होगी

संयोजक मंडल ने कहा है कि “पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रति वर्ष दिए जाने वाले दुनिया के सबसे सम्मानित ग्रीन नोबेल (गोल्डमेन पर्यावरण अवार्ड) के लिए हमारे संघर्ष के साथी को चुना जाना हमारे लिए गर्व की बात है l यह अवार्ड हसदेव के बचाने पिछले 12 वर्षो से संघर्षरत प्रत्येक आदिवासी और उससे जुड़े हर नागरिक का सम्मान है l हमारी लड़ाई को आज पूरी दुनिया समर्थन दे रही है।”

“आलोक शुक्ला जिन्होंने न सिर्फ हसदेव के ग्रामीणों को संगठित किया, बल्कि लड़ने का शांतिपूर्ण, क़ानूनी रास्ता बताया और चुनौतियों के वाबजूद समृद्ध हसदेव अरण्य की प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए हमारे साथ लड़ रहे हैं। वह एशिया महाद्वीप से इसके लिए प्रतिनिधित्व कर रहे हैं l इस सम्मान से सिर्फ हसदेव नही बल्कि प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण को बचाने के अन्य जन आन्दोलनों को भी ताकत मिलेगीl”

समिति के मुताबिक पिछले 12 वर्षो से हम शांतिपूर्ण, लोकतान्त्रिक और संवैधानिक अधिकारों के तहत अपने समृद्ध जल, जंगल, जमीन, आजीविका, संस्कृति और अस्त्तिव को बचाने के लिए आन्दोलनरत हैं l कई चुनौतियों, कंपनियों की साजिशों और दमन के वाबजूद हम हसदेव अरण्य के एक बड़े वन क्षेत्र को बचाने में कामयाब रहे जिसे लेमरू हाथी रिजर्व के रूप में राज्य सरकार को अधिसूचित करना पड़ा l लेमरू रिजर्व की सीमा में 17 कोल ब्लॉक, इसमें आवंटित हो चुके कोरबा जिले के पतुरिया गिद्धमुड़ी एवं मदनपुर साऊथ कोल ब्लॉक भी शामिल हैं, को विकसित करने या नई नीलामी की प्रक्रिया को बंद कर दिया गया है l पिछले दिनों ही इस क्षेत्र की 17 ग्रामसभाओं को सामुदायिक वन संसाधन के अधिकार प्राप्त हुए हैंl

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने कहा है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही सरगुजा जिले की 3 कोयला खदानों को गैरकानूनी रूप से आगे बड़ा रही है, जिसके लिए कभी भी हमारी ग्रामसभाओं ने सहमति प्रदान नही कीl हम उस जंगल को बचाने प्रतिबद्ध हैं और हसदेव अरण्य के एक पेड़ को कभी काटने नही देंगेl परसा कोल ब्लॉक की फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव की जांच और कार्यवाही करने के लिए राज्यपाल के निर्देशों की धज्जियां उड़ाकर पेड़ो की कटाई की गई है, जिसे हम कभी भूल नही सकतेl आज भी हमारे शांतिपूर्ण आन्दोलन को कुचलने की लगातार कोशिशें कंपनी के द्वारा जारी हैंl

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने राज्य और केंद्र सरकार से पुनः परसा और परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान के दूसरे चरण को निरस्त करने की भी मांग की है।

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