रायपुर। इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक घोटाले की नए सिरे से जांच शुरू होने का प्रतिफल मिलने लगा है। हाल ही में संबंधितों को नोटिस जारी करने के बाद एक फर्म ने बैंक में 28 लाख 50 हजार रूपये जमा कराये हैं। इसीके मद्देनजर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक ट्वीट जारी करते हुए कहा है कि घोटाला करने वाले जेल भी जायेंगे।
अभी सारा पैसा लौटेगा…
मुख्यमंत्री ने 28 लाख 50 हजार रूपये की एक रिसिविंग की फोटो पोस्ट करते हुए लिखा है कि प्रियदर्शनी बैंक घोटाले की जांच का प्रतिफल मिलने लगा है। बैंक के खाते में 28.5 लाख रुपये जमा हुए हैं। अभी सारा पैसा लौटेगा, घोटाला करने वाले जेल भी जायेंगे। इस रिसिप्ट में फाइनेंस और इन्वेस्टमेंट से जुड़ी एक कंपनी और उसके द्वारा ऋण की किश्त पटाने का उल्लेख है। साफ है कि जब 17 साल पहले हुए घोटाले को लेकर नोटिस गई तब संबंधित फर्म ने आनन-फानन में रकम जमा कराया।
17 साल पुरानी फाइल खुली
इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक का 28 करोड़ का घोटाला डेढ़ दशक पुराना है, लिहाजा 17 साल पुराने इस मामले की फाइल विधानसभा चुनाव से पहले खुलने की खबर से सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई है। इंदिरा बैक घोटाले का नाम जब सामने आया था तब मैनेजर के नार्को टेस्ट में घोटाले से जुड़े सफेदपोशों के नाम सामने आए थे। जो पिछली सरकार में बेहद प्रभावशाली थे।
कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तो भी नार्को टेस्ट की सीडी कोलेकर प्रेस कांफ्रेंस किया था। नार्को टेस्ट में प्रमुख अभियुक्तों में से एक उमेश सिन्हा ने बताया था कि उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके मंत्रियों अमर अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल और रामविचार नेताम सहित कई भाजपा नेताओं को करोड़ों रुपए दिए थे। हालांकि बाद में मामला ठंडा पड़ गया। लेकिन चुनाव से पहले इसकी जांच की अनुमति मिलने से अटकलें तेज हो गई है। राजधानी रायपुर के बैंक घोटाले की जांच के लिए राज्य सरकार ने मामले की जांच नए सिरे से कराने के लिए हाईकोर्ट से अनुमति मांगी थी।
बैंक ने खुद को घोषित कर दिया था डिफाल्टर
साल 2006 में आर्थिक अनियमितता पाए जाने पर इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक बंद हुआ था। जानकारी के मुताबिक इंदिरा बैंक में 54 करोड़ का घोटाला सामने आने के बाद सभी खातेदारों में हड़कंप मच गया था। बैंक में करीब 22 हजार खातेदार थे। घोटाला उजागर होने के बाद बैंक ने अपने आप को डिफाल्टर घोषित कर दिया था और इंश्योरेंस कंपनियों की मदद से खातेदारों को राशि भी लौटाई थी। लेकिन यह राशि काफी कम थी। इस मामले में बैंक के तत्कालीन मैनेजर उमेश सिन्हा का नार्को टेस्ट भी किया गया था।
तत्कालीन सरकार ने दी थी सफाई
रमन सरकार के प्रवक्ता बृजमोहन अग्रवाल ने तब कहा था कि इस सीडी को न्यायालय में सबूत के तौर पर पेश ही नहीं किया गया है, क्योंकि जांच के दौरान बयानों में विरोधाभास मिला था, जबकि कांग्रेस नेता ने पत्रवार्ता में बताया था कि बैंक मैनेजर उमेश सिन्हा की सीडी देखने पर साफ था कि उसने बैंक के चेयरमैन रीता तिवारी के आदेश पर मुख्यमंत्री सहित चार कैबिनेट मंत्रियों को एक-एक करोड़ रुपये बांटे थे। यही नहीं, दिवंगत डीजीपी ओपी राठौर को भी एक करोड़ रुपये दिए गए थे। मैनेजर ने खुद एक रुपया भी नहीं लिया था। मामला खुलने के बाद चेयरमैन रीता तिवारी आनन फानन में विदेश निकल गई थीं।