कोरबा. जिले का महिला एवं बाल विकास विभाग इन दिनों बच्चों के पोषक आहार रेडी टू ईट को लेकर सुर्खियों में है। यहाँ भैंस खटाल में रेडी टू ईट खपाने का मामला उजागर होने के बाद किसी तरह बचा लिए गए अधिकारी कमीशनखोरी की अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं. रेडी टू ईट की कमाई फिलहाल रुक गई है तो आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को बंटने वाले भोजन में भी डंडी मारी जा रही है. जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों मे भोजन बनाकर देने वाली महिला समूहों को विभाग द्वारा भुगतान किये जाने के बाद अब इनसे कमीशन वसूली की तैयारी है.

भोजन में कमीशन खोरी की खबर से पहले जरा इस बात की चर्चा कर लें कि रेडी टू ईट में के वितरण में अफरा तफरी का मामला उजागर होने के बाद किस तरह महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों को बचाया गया. दरअसल रेडी टू ईट के वितरण के तहत बीज निगम के कर्मचारी वाहनों में इसे भरकर पहले परियोजना के गोदाम में रखते हैं और वहां से बारी बारी से सभी सेक्टर के आंगनबाड़ी केंद्रों में इसे पहुंचाया जाता है, वितरणकर्ता द्वारा कार्यकर्ताओं से पावती भी ली जाती है. इसी दौरान सारा खेल खेला जाता है वितरणकर्ता द्वारा रेडी टू ईट के पैकेट कम मात्रा में देकर ज्यादा की पावती पर हस्ताक्षर कराया जाता है, इसके बाद बचे हुए पैकेट को बाहर खपा दिया जाता है, मगर इस बार वितरणकर्ता आंगनबाड़ी केंद्रों में जाने की बजाय सीधे गोकुल नगर पहुंच गया, जहां उसके द्वारा रेडी टू ईट उतारने के दौरान ही पुलिस पहुंच गई. कहा जा रहा है कि अगर वितरणकर्ता पहले आंगनबाड़ी केंद्र में पहुंचकर हस्ताक्षर करवा लेता तो केंद्रों के सुपरवाईजर और कार्यकर्ता भी इसकी जद में आते हैं.जांच के दौरान एक और गड़बड़ी उजागर हुई कि पूर्व में दूसरे केंद्र में भी रेडी टू ईट के पैकेट नहीं छोड़े गए थे मगर वहां के सुपरवाइजर ने इसकी शिकायत पहले क्यों नहीं की यह सवाल उठता है, फिर भी उस बचा लिया गया. कुल मिला कर कहानी यह बनाई गई कि रेडी टू ईट के वितरण मे लगे कर्मियों ने गड़बड़ी की है, जबकि सच तो ये कि यहाँ रेडी टू ईट की अफरा तफरी पहले से चल रही थी.

अब बात अंगनबाडी केंद्रों में बच्चों को बंटने वाले भोजन में कमीशनखोरी की. दरअसल ये भोजन महिला समूहों से बनवाया जाता है, समूहों को चावल उपभोक्ता भंडारों से और दाल सब्जी तथा अन्य सामग्रियों तथा मेहनताने का पैसा महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से मिलता है. इस रकम के एवज में भी कमीशन की मांग की जाती है.

समूहों को बंटा पैसा, अब वसूली की बारी

सूत्रों से जानकारी मिली है कि कुछ दिनों पहले ही कोरबा जिले मे महिला समूहों को विभाग से कुछ महीनों की रकम का भुगतान किया गया है. अब इनसे कमीशन वसूलने की बारी है. समूहों से इसकी वसूली का जिम्मा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को सौंपा गया है. पता चला है कि विभाग के सुपरवाइजरो द्वारा प्रत्येक समूह से 20 प्रतिशत वसूलने को कहा गया है. चूंकि दीवाली करीब है इसलिए एक दो दिन के भीतर ही पैसों की वसूली का निर्देश है. जिले भर का आंकडा निकालें तो यह रकम लाखों में होती है जो विभाग मे नीचे से लेकर उपर तक बंटेगी.

‘प्रबल’ योजना में भी कमीशनखोरी

कोरबा जिले में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा DMF के फंड से “प्रबल” नामक योजना चलाई जा रही है. इसके तहत बच्चों को अंडा और केले का वितरण किया जाता है. जानकारी मिल रही है कि प्रबल योजना के पैसे मिलने के बाद उसमें से 40 से 50 प्रतिशत कमीशन देने को आंगनबाड़ी कार्यक्ताओं से कहा गया है.

इस तरह महिला एवं बाल विकास विभाग में कमीशन का खेल चला आ रहा है, जिसे अब तक रोका नहीं जा सका है. विभाग में जिस तरह कमीशन की परंपरा चल रही है, स्वभाविक है उसका असर बच्चों को बंटने वाले पोषक आहार पर ही पड़ेगा. क्योंकि महिला समूह कमीशन के लिए पैसे आखिर कहां से बचायेंगी. बच्चों की संख्या ज्यादा दर्शा कर आहार की मात्रा कम करके ही तो पैसे बचाये जा सकेंगे. बहरहाल इस तरह की कमीशनखोरी को रोकने के लिए विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की जरूरत है.

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